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लेखनी प्रतियोगिता -16-Jan-2023-स्वाभिमान

आज अचानक रिया, शुभम से टकरा गई और वो भी दस साल के बाद... लेकिन यह क्या वो कौन थी उसके साथ? 


शुभम और रिया की शादी को बारह साल हो चुके थे, लेकिन किस्मत का फैसला या परिवार का स्वार्थ, जिसके चलते शादी के दो साल बाद ही दोनों अलग हो गए।

रिया का अपने परिवार के प्रति स्वाभाविक झुकाव, शुभम की मां, शोभना जी को नागवार गुजरता था, जिसके परिणाम स्वरूप, उन्होंने अपने बेटे की बसी बसाई गृहस्थी में आग लगा दी। वो हर रोज़ झूठे इल्ज़ाम रिया के ऊपर लगाती और रोज़ उन दोनों के बीच लड़ाई करवाती। 

उस दिन शोभना जी का खानदानी हार मिल नहीं रहा था। उन्हें उसे पहनकर सत्संग में जाना था। 

शुभम अपनी मां को आवाज़ देते हुए, "मां, जल्दी करो, मैं तुम्हें छोड़ आऊं, फिर मुझे काम पर भी जाना है।"

शोभना जी को हार मिला नहीं तो वो चिल्ला पड़ी, "तेरी बीवी ने मेरा हार चोरी कर लिया है। आज सुबह बड़ी जल्दी में मायके के लिए निकली थी। मेरा हार वहां छिपा कर आई है।" 

चोरी की बात सुनते ही शुभम इतना भड़क गया कि उसने बिना सोचे समझे रिया पर हाथ उठा दिया, लेकिन आज रिया के सब्र का बांध टूट गया। उसके स्वाभिमान को गहरी चोट लगी थी। उसने बिना कुछ बोले अपना सामान बांधा और शुभम को छोड़कर हमेशा के लिए अपने घर चली गई।

कुछ देर बाद शोभना जी का हार तो उन्हीं की अलमारी से मिल गया लेकिन शुभम को जिंदगी की सबसे बड़ी हार से मिलवा गया।

वो दिन और आज का दिन, रिया ने कभी पीछे पलटकर नही देखा। शुभम ने उसे ढूंढने की बहुत कोशिश की लेकिन वो कभी उसे ढूंढ नहीं पाया। 

आज दस साल बाद उसे देखकर, शुभम चीख कर रो पड़ा और पैरों में गिरकर माफी मांगने लगा, "रिया, मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया, जिसकी सजा मैं आज तक भुगत रहा हूं। मां की ज़ुबान पर तुम्हारे लिए जो इतनी कड़वाहट थी, भगवान ने वो ज़ुबान के बोल ही छीन लिए; उन्हें लकवा मार गया। रिया, मुझे माफ करदो और वापिस आ जाओ।"

रिया बिल्कुल खामोश थी, उस दिन भी और आज भी! वो कुछ नहीं बोली लेकिन उसके साथ में जो दस साल की बच्ची थी, उसने बोलना शुरू किया, "पापा! मैं पीहू हूं। मुझे पता है आप मुझे नहीं जानते, लेकिन मैं आपको जानती हूं।"

शुभम, अपने लिए पापा शब्द सुनकर रो पड़ा और गुस्से से बोला, "रिया, क्या यह मेरी बेटी है? तुमने इसे मुझसे दूर क्यों रखा? क्यों मुझे इसके बारे में कभी नहीं बताया? मैं इसका बाप हूं, तुमने मुझसे यह हक कैसे छीना? तुम होती कौन हो यह फैसला करने वाली...?"

रिया, जो हर एक ज्यादती को खामोशी से बर्दाश्त कर लेती थी, आज पहली बार चिल्लाकर बोली, "मैं इसकी मां हूं और मुझे यह हक बिल्कुल वैसे ही मिला है, जैसे तुम्हारी मां को तुम्हारी शादी तुड़वाने का हक मिला था। उस घर में तुमने कभी कोई फैसला मुझसे पूछ कर नहीं लिया था, तो अपनी बेटी को एक निर्दयी परिवार से बचाने का फैसला मैंने अकेले ही लिया था।"

शुभम को अपनी दौलत पर बहुत घमंड था। वो बोला, "तुम मेरी बेटी को गरीबी में पालकर क्या बनाओगी। मैं उसे तुमसे अच्छी और बेहतर परवरिश दे सकता हूं। सीधी तरह इसे लेकर घर चलो, वरना मैं अदालत में जाकर इसकी कस्टडी ले लूंगा और फिर तुम्हें इसके आसपास भी नहीं आने..."

"एकदम खामोश! आप अपनी ही बोलते जा रहे हैं। क्या कोई मुझसे भी पूछेगा कि मेरा क्या फैसला है?" पीहू ने अपने पापा को बीच में टोकते हुए कहा।

"हां बेटा, तुम ही बताओ अपनी मां को कि तुम मेरे साथ राजकुमारी बन कर रहना चाहती हो। उसे अपना फैसला सुना दो और चलो मेरे साथ!"

"आप बिल्कुल ठीक कह रहे हो। जब मां ने मुझे आपके बारे में बताया था, तब मैं भी ऐसा ही चाहती थी; लेकिन आज आपसे मिलने के बाद मेरी सोच बदल गई है। जो एक अच्छा पति और एक अच्छा इंसान नहीं बन सका, वो एक अच्छा बाप क्या बन पाएगा? आपको आज भी अपनी गलती की माफी मांगनी नहीं आई तो आपको एक बेटी पालनी क्या आएगी? मुझे आपकी शक्ल भी नहीं देखनी... यह मेरा फैसला है!"

रिया अपनी बच्ची के फैसले पर मंद मंद मुस्कुरा रही थी। आज उसका खोया हुआ स्वाभिमान वापिस मिल गया था। वो गर्व के साथ अपनी बच्ची का हाथ पकड़ कर शुभम को वहां अकेला छोड़ गई।।


               *****Samridhi Gupta 'रसम'*****


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7 Comments

shweta soni

02-Feb-2023 12:48 PM

👌👌👌👏👏

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Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:58 PM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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Babita patel

18-Jan-2023 03:22 PM

very nice

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